मेरा भी मुझको सहारा नहीं होता |
गर साथ हमको तुम्हारा नहीं होता ||दिल टूटना तो मंज़र-ए-आम है लेकिन |
हर बार मगर नाम तुम्हारा नहीं होता ||
दिल्लगी तो फिरभी हो सकती हो भले |
इश्क मगर हाँ फिर दुबारा नहीं होता ||
भूल ही गया होगा वो शायद |
कोई मुद्दतों खफ़ा नहीं होता ||
मजबूरियों से बेबस है हर इंसा |
कोई दिल से बेवफ़ा नहीं होता ||
सबके अपने-अपने मसीहा हैं |
खुद से कोई खुदा नहीं होता ||
अबतलक तो उसे भूल जाते हम भी |
गर वो दर्द-ए-दिल दवा नहीं होता ||
उसकी चारासाज़ी में हो न कुछ कमी पर |
जो ना होने को आए, वो अच्छा नहीं होता ||
होने को तो कुछ भी हो सकता था मगर |
अच्छा होता जो सामने धोखा नहीं होता ||
मंज़िल मेरे भी पीछे होती यकीनन ही |
यूँ मील के पत्थरों ने पुकारा नहीं होता ||
देखना है "राहत" होता है मुझको क्या क्या |
सच बोलने से अब किनारा नहीं होता ||
© गौरव दीक्षित "राहत"